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बिहार विधानसभा चुनाव: किस करवट बैठेगा ऊंट?

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बिहार विधानसभा चुनाव: किस करवट बैठेगा ऊंट?

संतोष दूबे, पटना।
बिहार चुनाव के अंतिम और तृतीय चरण के लिए 7 तारीख को मतदान होना है। यह मतदान 15 जिलों के 78 विधानसभा क्षेत्रों के लिए होना है जिसमे पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल, सहरसा, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, वैशाली, मधेपुरा और समस्तीपुर जिले शामिल हैं। अन्य सभी जिलों के सभी विधानसभा क्षेत्रों में पूर्व के दो चरणों में क्रमशः 28 अक्टूबर और 3 नवंबर को मतदान हो चुका है। अब 10 तारीख को नतीजों का इंतजार है कि ऊंट किस करवट बैठेगा? अब तक की मीडिया रिपोर्ट की माने तो दोनों ही प्रमुख गठबन्धनों में टक्कर की स्थिति बताई जा रही है। फिर भी ऊहापोह की स्थिति में पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक यह कहने से गुरेज नही कर रहे कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने की संभावना अधिक दिख रही है। इससे इतर तेजस्वी यादव को लेकर भी तेज चर्चा हुई कि उनकी जनसभाओं में उमड़ी भीड़ उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा सकती है लेकिन इस तरह की कयासबाजी प्रथम चरण के मतदान के बाद थोड़ी सुस्त पड़ने लगी। कारण यह भी बताया जा रहा था कि प्रथम चरण में में एनडीए को उत्साहवर्धक वोट नही मिला है। परंतु दूसरे चरण के मतदान के बाद मीडिया के बीच अंदरखाने यह चर्चा शुरू हो गयी कि एनडीए की स्थिति फिर से सुधर रही है। ऐसे असमंजस की स्थिति में ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट भी कुछ स्पष्ट नहीं कर पा रही कि ऊंट किस करवट बैठेगा? हालांकि यह तो 10 तारीख को ही स्पष्ट हो पायेगा लेकिन मौजूदा स्थिति में यह प्रतीत हो रहा है कि बिहार की जनता एक भरोसे के रूप में नीतीश कुमार को एक बार फिर से मौका दे सकती है। इसे कुछ लोग विकल्पहीनता की स्थिति में भी देख रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि भाजपा जेडीयू गठबंधन के पास नीतीश और नरेंद्र मोदी जैसा बड़ा नाम है। दूसरी ओर महागठबंधन तेजस्वी यादव के चेहरे पर चुनावी बैतरणी पार करने की कोशिश में है। तेजस्वी को यदि लाभ मिलता है तो वह नीतीश कुमार के खिलाफ एन्टी इनकंबेंसी का लाभ होगा। लेकिन दूसरी तरफ लालू राबड़ी राज के दौरान हुए भ्रष्टाचार, लॉ एंड आर्डर फेलियर, परिवारवाद आदि का डर नीतीश कुमार के पक्ष को ही मजबूत करता है। इसके अलावा जनता के एक हिस्से के बीच चर्चा ऐसी भी है कि “चाहे कुछ भी हो, नीतीश कुमार ने काम तो किया ही है।” इसके अलावा तर्क यह भी दिया गया कि नीतीश और बीजेपी के वोटर्स चुपचाप वोट करते है, वे चुनावी सभा का हिस्सा नही बनते। तमाम तरह के कयासों के बीच 10 तारीख का इंतजार है। महत्वपूर्ण यह भी की जनता के बीच 10 लाख नौकरी का मामला बहुत जोर पकड़ता नही दिख रहा है। लोगों में दलगत वोट करने की इच्छा ही झलक पा रही है।
इस सूरत में यह कहना कि बिहार की कुर्सी किसकी होगी ? नतीजे आने तक इसपर ताल ठोंकना थोड़ी टेढ़ी खीर है लेकिन इतना स्पष्ट दिख रहा है कि एनडीए बहुमत में रहेगा और नीतीश कुमार को एक और मौका मिल सकेगा। जहाँ तक मीडिया द्वारा तेजस्वी के समर्थन में भारी भीड़ को लेकर जिस तरह का नैरेटिव दिखाया गया कि तेजस्वी को बढ़त मिल रही है, 2015 में भी मीडिया अकेले भाजपा की सरकार बनते देख रही थी। बहरहाल स्थिति तो 10 तारीख को ही स्पष्ट होगी।

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