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Bihar Result Analysis: NDA से कहां हो गई चूक, कैसे राजद का खुला खाता, माले-कांग्रेस भी हुई मजबूत

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Bihar Result Analysis: NDA से कहां हो गई चूक, कैसे राजद का खुला खाता, माले-कांग्रेस भी हुई मजबूत

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में खराब प्रदर्शन के कारण बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सीट में कमी आयी जबकि विपक्षी महागठबंधन अपनी स्थिति में सुधार लाने में सफल रहा। बिहार की कुल 40 लोकसभा सीट में से 30 सीट ही इसबार भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) जीत पाया जो 2019 में 39 की तुलना में भारी गिरावट है तथा 2014 (31) और 2009 (32) की तुलना में भी कम है। राजग बिहार में 2005 से शासन कर रहा है और उसने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे मजबूत सहयोगी के नेतृत्व में ‘‘मोदी लहर’’ के आगमन से पहले भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। जब मोदी लहर आई तो उसने यह सुनिश्चित किया कि जदयू अध्यक्ष कुमार के राजग में न होने के बावजूद इस गठबंधन का पलड़ा भारी रहे। विपक्षी गठबंधन ‘‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस(इंडिया) ’’ इसबार के चुनाव में बिहार में कुल नौ सीट जीतीं, जबकि एक सीट निर्दलीय के खाते में गई। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के तहत एक जून को जिन आठ निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ, उनमें से छह सीट राजद-कांग्रेस-वाम गठबंधन के पास चली गयीं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (भाकपा माले) ने इसबार दो सीट जीतीं हैं। इस लोकसभा चुनाव में इसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘भले ही बिहार में ‘‘इंडिया’’ गठबंधन ने खराब प्रदर्शन किया हो, लेकिन सबसे अच्छा प्रदर्शन एक बार फिर बिहार के शाहाबाद और मगध क्षेत्र में रहा है। पिछले दिनों इस क्षेत्र में जिन आठ सीट पर मतदान हुआ, उनमें से ‘‘इंडिया’’ गठबंधन ने छह पर जीत हासिल की और अन्य दो पर कड़ी टक्कर दी।’’ भाकपा माले ने नालंदा समेत तीन सीट पर चुनाव लड़ा था। वह इनमें से राजग की दो महत्वपूर्ण सीट– आरा और काराकाट पर कब्जा करने में सफल रही। नालंदा नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र है। भाकपा माले ने केंद्रीय मंत्री और दूसरी बार भाजपा सांसद रहे आर के सिंह से आरा सीट छीन लेने के साथ काराकाट में मशहूर भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह को भी परास्त किया। काराकाट सीट 2014 में पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने जीती थी और इसबार के चुनाव में उनके पक्ष में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर राजग के कई स्टार प्रचारकों द्वारा रैलियां किए जाने के बावजूद इसे वह वापस जीतने में असफल रहे। भट्टाचार्य इस बात से खुश दिखे कि उनकी पार्टी ने ‘‘लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाली ताकतों की एकता और दावे को आकार देने में अहम भूमिका निभाई’’ है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी पार्टी को भोजपुर में अगिआंव सीट पर विधानसभा उपचुनाव का भी सामना करना पड़ा जहां चुनाव हमारे विधायक मनोज मंजिल को राजनीति से प्रेरित झूठे मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण अयोग्य ठहराए जाने के कारण आवश्यक हो गया था। पार्टी ने यह उपचुनाव आरामदायक अंतर से जीत लिया।’’ तीन दशक से भी अधिक समय पहले भाकपा माले ने बिहार से अपनी पहली संसदीय जीत हासिल की थी, जब रामेश्वर प्रसाद ने ‘इंडियन पीपुल्स फ्रंट’ के बैनर तले आरा से जीत हासिल की थी।
भट्टाचार्य ने कहा कि भाकपा माले के दो किसान नेताओं के लोकसभा में इसबार प्रवेश से लोकतंत्र, न्याय और सम्मान के साथ विकास के लिए लोगों के आंदोलन को बल मिलेगा। बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन का नेतृत्व कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन करते हुए केवल चार सीट हासिल कीं पर इस दल के लिए बड़ी राहत भरी बात रही क्योंकि पिछले आम चुनाव में इसका खाता भी नहीं खुला था। राजद द्वारा इसबार जीती गयी चार सीट में से तीन सीट अंतिम चरण के मतदान वाली सीट– पाटलिपुत्र, जहानाबाद और बक्सर भी हैं। कांग्रेस ने 2019 में किशनगंज सीट जीतकर बिहार में जीत हासिल करने वाली एकमात्र गैर राजग पार्टी बन थी। इसबार उसने इस सीट को बरकरार रखने के साथ अपनी पुरानी दो अन्य सीट– कटिहार और सासाराम को भी वापस हासिल कर लिया। बिहार विधानसभा 2020 में प्रदेश के सीमांचल में पांच सीट जीतने में सफल रहने वाली हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने लोकसभा चुनाव में अपने 11 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे थे और जमकर प्रचार किया था, पर मुस्लिम बहुल किशनगंज के मतदाताओं ने भी उनको नकार दिया और एआईएमआईएम की बिहार इकाई के प्रमुख अख्तरुल ईमान को इसी सीट से हार का सामना करना पडा। बिहार का सीमांचल में पडने वाली एक और सीट (पूर्णिया) राजग ने खो दी है। पूर्णिया ऐसी सीट बन गई जहां किसी निर्दलीय उम्मीदवार के पक्ष में मतदाताओं ने वोट किया। पूर्व सांसद पप्पू यादव ने इस सीट को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़कर जीता है। कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन के पति और स्वयं को ‘‘राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का वफादार सिपाही’’ बताने वाले पप्पू यादव ने चुनाव से पहले अपनी जन अधिकार पार्टी का विलय राष्ट्रीय दल में इस उम्मीद से कर दिया था कि उनके लिए यह सीट छोडी जाएगी पर राजद ने जदयू से पाला बदलकर आई बीमा भारती को चुनावी मैदान में उतारकर कांग्रेस से टिकट की उनकी उम्मीदों को धराशायी कर दिया।

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