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कभी दुनिया को शिक्षित करने वाला बिहार आज कहा है ?

kabhee duniya ko shikshit karane vaala bihaar aaj kaha hai ? 49/5000 Where is Bihar ever educating the world today?

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कभी दुनिया को शिक्षित करने वाला बिहार आज कहा है ?

Shaurya Roy : 22 मार्च यानी आज ही के दिन साल 1912 में बिहार को बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग कर राज्य बनाया गया था l स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार के चम्पारण के विद्रोह को, अंग्रेज़ों के खिलाफ बगावत फैलाने में अग्रगण्य घटनाओं में से एक गिना जाता है l स्वतंत्रता के बाद बिहार का एक और विभाजन हुआ और सन 2000 में झारखण्ड राज्य इससे अलग कर दिया गया l

प्राचीन काल में बिहार शिक्षा का प्रमुख केंद्र था l शिक्षा का प्रमुख केंद्र नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, वर्जासन विश्वविद्यालय एवं ओदंतपुरी विश्वविद्यालय थे l इस स्वर्णमयी इतिहास पर बिहार के साथ पुरे भारत को हमेशा से गर्व रहा है l मौजूदा दौर में सवाल ये है की क्या सिर्फ अपने अतीत को याद कर हम बिहार की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई से मुँह मोर सकते हैं? चारों तरफ बिहार की शिक्षा व्यवस्था के सूरते-हाल पर बदनामी तेजी से फैलती जा रही है l बिहार दिवस के मौके पे ये ज़रूरी है की बिहार के लोग इस सवाल को गंभीरता से लें l

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वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की 70वी बैठक में ‘2030 सतत विकास हेतु एजेंडा’ के तहत सदस्य देशों द्वारा 17 विकास लक्ष्य अर्थात एसडीजी तथा 169 प्रयोजन अंगीकृत किये गए हैं l इन लक्ष्यों में शिक्षा एक बहुत महत्वपूर्ण लक्ष्य है जिसके प्रति भारत भी अपनी प्रतिबद्धता रखती है l सोचने वाली बात ये है की जब 9.9 करोड़ की जनसंख्या के साथ भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य बिहार शिक्षा के क्षेत्र में लगातार पिछड़ा हुआ है तो क्या भारत की उन्नति संभव है ? बिहार तभी बढेगा जब बिहार पढ़ेगा l जब केंद्र की सरकार कौशल विकाश के तरफ अपने कदम बढ़ाते जा रही है तो क्या बिहार की जनता सिर्फ अपनी धीमी गति से बढ़ते साक्षरता दर से संतोष करें?
शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की आकांशा की बात करें तो वो कहीं से भी किसी भी बड़े महानगर के युवाओं की आकांक्षाओं से काम नहीं है l बिहार के युवा विश्व के तमाम बड़ी शिक्षा संस्थाओं में अपना परचम लहरा चुके हैं जो इस बात का प्रमाण है की हमारे राज्य में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है l तमाम राज्य सरकारों ने बिहार के इन कड़ोड़ों प्रतिभा के साथ सिर्फ अन्याय ही किया है l

समस्या की बात की जाए तो बिहार की शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी ज़रूरतों का बड़ा अभाव रहा है l सबसे बड़ी रुकावट शिक्षकों और स्कूल-भवन सम्बन्धी ज़रूरतों का आभाव सबसे बड़ी रुकावट है l दूसरी बात ये की शिक्षकों और खासकर योग्य शिक्षकों की अभी भी भारी कमी है l तीसरी और बेहद ज़रूरी बात ये की निरिक्षण करने वाले सरकारी तंत्र और निगरानी करने वाली विद्यालय शिक्षा समिति अमूमन निष्क्रिय पाए गए हैं l

इस दिशा में एक महत्वपूर्ण बात जो निकल कर आती है वो है गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी सुनिश्चित करना l विश्व के साथ साथ भारत के भी कई राज्यों में सिविल सोसाइटी के साथ कई प्रयोग कर के शिक्षा की स्थिति भी सुधार किया गया है जिसमे तमिलनाड़ु और आँध्रप्रदेश के प्रयोगों से बिहार को भी सीखना चाहिए l सिविल सोसाइटी एवं गैर सरकारी संगठनों के साथ अगर सरकार मिल कर सिर्फ ऊपर लिखे गए बुनियादी अभाव पर काम करें तो इसके परिणाम बहुत बेहतर होंगे l
व्यस्क साक्षरता एवं स्त्री साक्षरता की सूची में बिहार भारत के सबसे बुरे राज्यों में से एक है l ये ऐसी क्षेत्र हैं जिसमे सरकारी तंत्र भी खासा दिलचस्पी नहीं लेती l जबकि यदि व्यस्क एवं स्त्री साक्षरता में बढ़ोतरी हो तो वो आम जनमानस में प्राथमिक शिक्षा के प्रति ललक पैदा कर सकती है l सरकार को इन दो क्षेत्र में कार्य करने क लिए गैर सरकारी संगठों के साथ एक मज़बूत सहभागिता करनी चाहिए l जिस ईमारत की बुनियाद मज़बूत नहीं होती वो ज़्यादा दिनों तक टिक नहीं पाती , ठीक उसी प्रकार बिहार के शिक्षा व्यवस्था पे बड़ी बड़ी बातें हो सकती हैं मगर जब तक बिहार के शिक्षा के क्षेत्र की बुनियादी समस्या का हल हम सभी मिल कर नहीं निकलते तब तक बांकी सभी बातें सिर्फ कागज़ी घोड़े हीं साबित होगी l

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