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निर्भया को मिला इन्साफ, दुष्कर्मियों में ऐसे ही कायम होगा डर!
नई दिल्ली। 16 दिसम्बर 2012 की रात छह दरिंदों द्वारा निर्भया का रेप किया गया था और उसके बाद इन बदमाशों ने उसके शारीर के बाहरी और अन्दुरुनी अंगों को क्षत विक्षत कर दिया था. 6 में से एक दोषी जेल में ही दम तोड़ दिया था और एक नाबालिग होने के कारन तीन वर्ष बाद रिहा कर दिया गया था, शेष 4 को आज दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गयी. मामला दिल्ली और देश में इतना गुंजा की लगा देश की बेटियों के साथ अब कोई और ऐसी घटना नहीं घटेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. देश के प्रत्येक राज्यों से रेप और मर्डर की खबरें आम बनी रही हैं. राष्ट्रीय राजधानी में मिडिया ने इस केस को खूब चलाया. मिडिया का दबाव नहीं रहता तो शायद दरिंदो को अब तक फांसी भी नहीं हो पाती. सात साल और तीन महीने तक निर्भया की माँ, बाप अपनी बेटी के साथ हुई दरिंदगी को लेकर न्याय की गुहार लगाते कोर्ट के चक्कर काट रहे थे. इस दौरान भी उन्हें कई तरह की अवमानना का सामना करना पड़ा. सभी दुष्कर्मियों को निचली अदालत ने 9 महीने में ही फांसी की सजा सुना दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट को इस सजा पर मुहर लगाने में 6 महीने लग गए थे. सुप्रीम कोर्ट भी 2017 में स्पष्ट कर दिया था की फांसी की ही सजा होगी लेकिन तारिख पे तारीख वाले सिस्टम में निर्भया की आत्मा भटकती रही. चार बार डेथ वारंट भी जारी हुए और आखिरकार शुक्रवार 20 मार्च को सुबह साढ़े पांच बजे निर्भया के रेपिस्टों को फांसी पर लटका दिया गया. दोषियों को मिली इस सजा से आम जनमानस में न्याय व्यवस्था के प्रति दृढ विश्वास का संचार हुआ है. प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर कहा की “ न्याय की जीत हुई है, महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण है.
Justice has prevailed.
It is of utmost importance to ensure dignity and safety of women.
Our Nari Shakti has excelled in every field. Together, we have to build a nation where the focus is on women empowerment, where there is emphasis on equality and opportunity.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 20, 2020
बहरहाल, निर्भया किसी की भी बेटी हो सकती है. एक निर्भया को तो न्याय मिल गया लेकिन एक बड़ा सवाल है बाकी को कब मिलेगा न्याय? आज भी बेटियाँ दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं. तमाम सजाओं के प्रावधान के वावजूद महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. एसिड अटैक और डोमेस्टिक वायलेंस के अलावा वर्क प्लेस और सार्वजनिक स्थानों पर भी महिलाएं शोषित होती रही हैं. जरूरत है की सख्त से सख्त लॉ एंड आर्डर और कोर्ट के सख्त सजाओं के साथ ही सिविल सोसाइटी और प्रत्येक नागरीक का अपना दायित्व निभाए और किसी भी प्रकार के शोषण के खिलाफ आवाज उठायें.