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शिवसेना ने कांग्रेस को ‘‘पुरानी चरमराती खटिया’’ बताया
मुंबई। शिवसेना ने मंगलवार को अपनी सहयोगी कांग्रेस को ‘‘पुरानी चरमराती खटिया’’ बताया, जिसके बाद सोनिया गांधी की अगुवाई वाली पार्टी ने गठबंधन सरकार में अपनी बात नहीं सुने जाने को लेकर अपना असंतोष जाहिर किया। हालांकि यह भी कहा कि महाराष्ट्र विकास अघाडी (एमवीए) की सरकार को कोई खतरा नहीं है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोराट ने कहा कि शिवसेना के मुखपत्र सामना का लेख पूरी तरह गलत जानकारी पर आधारित है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय में कहा गया कि विभिन्न विचारधाराओं वाले दलों के गठबंधन में नाराजगी होना लाजमी है। उसने कहा कि कांग्रेस ऐतिहासिक विरासत वाली एक पुरानी पार्टी है जहां नाराजगी की सुगबुगाहट ज्यादा है। मराठी दैनिक में लिखा गया है, ‘‘खटिया पुरानी है लेकिन इसकी एक ऐतिहासिक विरासत है। इस खाट पर करवट बदलने वाले लोग भी बहुत हैं…चाहे कांग्रेस हो या राकांपा, दोनों दलों में तपे-तपाये नेता हैं जिन्हें पता है कि कब असंतोष प्रकट करना है और कब पाला बदलना है।’’ उसके संपादकीय में लिखा गया है, ‘‘ पार्टी में कई ऐसे हैं जो पाला बदल सकते हैं। यह कारण है कि कुरकुराहट महसूस की जा रही है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अघाड़ी सरकार में ऐसी कुरकुराहट को सहन करने को तैयार रहना चाहिए।’’ शिवसेना ने इस संपादकीय में कहा है कि लेकिन किसी के मन में भी यह झूठी धारणा नहीं होनी चाहिए कि एमवीए सरकार (शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस) गिर जाएगी और “राजभवन के द्वार उनके लिए एक बार फिर सुबह-सुबह खोले जाएंगे।”
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संपादकीय में साफ तौर पर पिछले साल सत्ता-साझेदारी को लेकर शिवेसना और उसके तत्कालीन सहयोगी दल भाजपा के बीच गतिरोध के बीच नवंबर में राजभवन में सुबह सुबह भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और राकांपा नेता अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाने का हवाला दिया गया है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे राकांपा अध्यक्ष शरद पवार से कोविड-19 वैश्विक महामारी और चक्रवात ‘निसर्ग’ से प्रभावित लोगों को राहत देने समेत अन्य कई मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं, फलस्वरूप कांग्रेस के नेताओं में ऐसी भावना पैदा हो रही है कि प्रदेश कांग्रेस को अलग-थलग कर दिया गया है। कांग्रेस ने ठाकरे से जल्द से जल्द तीनों सत्तारूढ़ दलों की एक बैठक करने की अपील की है ताकि राज्य विधान परिषद में नामांकन के लिए 12 सदस्यों के नाम तय किए जा सकें। ‘सामना’ ने कांग्रेस को गठबंधन सरकार का “तीसरा स्तंभ” करार देते हुए दावा किया कि शिवसेना ने त्रिदलीय गठन में “सबसे ज्यादा बलिदान” दिया है। शिवसेना ने कहा, ‘‘ खुसर-फुसर क्यों हैं? उनकी यह शिकायत कि उनकी नहीं सुनी जाती है, का क्या मतलब है? कांग्रेस के नेता और मंत्री बालासाहब थोराट और अशोक चव्हाण दोनों के पास शासन का लंबा अनुभव है। उन्हें याद याद रखना चाहिए कि राकांपा प्रमुख शरद पवार को भी प्रशासन में लंबा अनुभव है। लेकिन उनकी पार्टी से तो कोई शिकायत नहीं है।’’
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उसने कहा कि नौकरशाही को लेकर शिकायत है लेकिन कितना ही बड़ा अधिकारी क्यों न हो , वह सरकारी सेवक होता है और उसे मुख्यमंत्री का आदेश मानना होता है। शिवसेना ने कहा कि मुख्य सविव अजोय मेहता को बार बार सेवा विस्तार मिलने को लेकर शिकायत है और इस वजह से नौकरशाही में असंतोष है, तो इस मुद्दे पर चर्चा की जा सकती है। मुखपत्र में कहा गया है, ‘‘ लेकिन ऐसी कोई शिकायत नहीं है कि सरकार में कोई अवैध काम किया गया है। पूरी नौकरशाही और प्रशासन कोविड-19 महामारी से संघर्ष करने में लगा है लेकिन तब भी उद्धव ठाकरे को चव्हाण एवं थोरोट की बातें सुननी चाहिए।’’ उसमें कहा गया है कि विधानपरिषद की 12 सीटें विधानसभा में गठबंधन के हर दल के संख्याबल के आधार पर साझा की जानी चाहिए। शिवसेना ने कहा, ‘‘ सत्ता साझेदारी में शिवसेना ने सबसे अधिक बलिदान दिया। उसे राकांपा को एकऔर मंत्रीपद देना पड़ा क्योंकि शरद पवार ने कांग्रेस को विधानसभाध्यक्ष का पद दिये जाने पर एतराज किया।’’ उसने कहा कि कांग्रेस को राज्यमंत्री के पदों के बजाय दो अतिरिक्त कैबिनेट मंत्री पद दिये गये। थोरोट ने कहा, ‘‘……‘सामना’ को एक और संपादकीय लिखना चाहिए। आज का लेख पूरी तरह अधूरी जानकारी पर आधारित है जो हमारे बारे में गलत संदेश देता है। हम महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के साथ हैं।